कोलेस्‍टेरॉल: समस्‍या से लेकर उपचार तक जानें सब कुछ

कोलेस्‍टेरॉल: समस्‍या से लेकर उपचार तक जानें सब कुछ

सेहतराग टीम

कोलेस्‍टेरॉल के बारे में हममें से अधिकांश लोगों ने जरूर सुना होगा। डॉक्‍टर अकसर खून में कोलेस्‍टेरॉल का स्‍तर कम करने की सलाह देते मिल जाएंगे। आखिर क्‍या है ये कोलेस्‍टेरॉल और क्‍यों ये हमारी सेहत के लिए खतरनाक है? आज हम कोलेस्‍टेरॉल और खान-पान के जरिये उसे नियंत्रित करने के बारे में ये आलेख आपके लिए लेकर आए हैं।

कोलेस्‍टेरॉल की समस्‍या

खून में कोलेस्‍ट्रोल की मात्रा सामान्‍य से ज्‍यादा हो जाने को चिकित्‍सीय भाषा में हाइपर कोलेस्‍टेरॉलीनिया कहते हैं और यह मुख्‍य रूप से एक पाचन संबंधी समस्‍या है जो गरिष्‍ठ यानी अधिक तेल-घी वाले भोजन के प्रयोग से पैदा होती है। हृदय धमिनयों के रोगों का इसे मुख्‍य कारण माना गया है। जिस व्‍यक्ति के रक्‍त में कोलेस्‍टेरॉल की मात्रा ज्‍यादा होती है उसे दिल के दौरे और उच्‍च रक्‍तचाप की आशंका दूसरों की अपेक्षा अधिक होती है।

कोलेस्‍टेरॉल पीले रंग का चिकनाईवाला पदार्थ होता है और पाचक रस, पित्‍त, वसा से बने आवरणों का, जो हमारी नाड़ियों को आस-पास के तत्‍वों से बचाते हैं और इस्‍ट्रोजन तथा इंट्रोजन नामक सेक्‍स संबंधी हार्मोनों का प्रमुख घटक होता है। यह वसा को शरीर में लाने-ले जाने, रोगों से रक्षा हेतु बल प्रदान करने, लाल रक्‍त कोशिकाओं की रक्षा करने और शरीर की मांसपेशियों की रक्षा करने जैसे अनेक कार्य करता है।

शरीर में जितना भी कोलेस्‍टेरॉल पाया जाता है वह आमतौर पर जिगर में पाया जाता है, फ‍िर भी इसका 20 से 30 फीसदी तक आमतौर पर उस भोजन से आता है जो हम खाते हैं। कुछ कोलेस्‍टेरॉल आंतों में पित्‍त के रास्‍ते भी निकलता है और भोजन वाले कोलेस्‍टेरॉल के साथ मिल जाता है। व्‍यक्ति कुल जितनी मात्रा में कोलेस्‍टेरॉल कंज्‍यूम करता है उसका लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक शरीर में समा जाता है।

गुड और बैड कोलेस्‍टेरॉल

कोलेस्‍टेरॉल कुछ प्रोटीन और लिपो प्रोटीन से बंधा रहता है जिनका चिकनाई या वसा से एक सजातीय संबंध होता है। रक्‍त से संबंधित इस चिकनाई या वसा को लिपिड कहते हैं। लिपो प्रोटींस के दो प्रमुख प्रकार होते हैं, एक कम घनत्‍व वाला और दूसरा उच्‍च घनत्‍व वाला। इन दोनों को क्रमश: एलडीएल यानी लो डेंसिटी लिपो प्रोटीन और एचडीएल यानी हाई डेंसिटी लिपो प्रोटीन कहा जाता है। आपने ये दोनों नाम भी डॉक्‍टरों के मुंह से खूब सुन रखे होंगे।

लो डेंसिटी यानी एलडीएल को हृदय और धमनियों के लिए खतरनाक माना गया है और यह कोलेस्‍टेरॉल रक्‍त वाहिनियों में अकसर जमता हुआ पाया गया है। इसलिए कहा जाता है कि खून में एलडीएल की मात्रा जितनी अधिक होगी, हृदय रोग का खतरा भी उतना ही अधिक होगा। दूसरी ओर एचडीएल को रक्‍त वाहिनियों के लिए वरदान माना जाता है क्‍योंकि ये इन वाहिनियों से कोलेस्‍टेरॉल को हटाता है। इसी लिए एलडीएल को बैड कोलेस्‍टेरॉल जबकि एचडीएल को गुड कोलेस्‍टेरॉल कहा जाता है।

क्‍यों बढ़ता है कोलेस्‍टेरॉल

खून में कोलेस्‍टेरॉल बढ़ने की मुख्‍य वजह भोजन और पाचन ही है। तले हुए खाद्य पदार्थ, दूध और उससे बने घी, मक्‍खन, क्रीम जैसे पदार्थों, मैदा, शक्‍कर, केक, पेस्‍ट्री, बिस्‍कुट, पनीर, आइसक्रीम इत्‍यादि तथा मांस, मछली, अंडे बहुत अधिक खाने से कोलेस्‍टेरॉल की मात्रा बढ़ती है। इसके अलावा जीवन में अनियमितता, धूम्रपान, शराब का सेवन आदि भी कोलेस्‍टेरॉल को बढ़ाता है। तनाव भी कोलेस्‍टेरॉल के बढ़ने के कारणों में एक माना जाता है।

घरेलू उपचार

हृदय रोग के खतरे को कम करने के लिए ये जरूरी है कि हम रक्‍त में एचडीएल यानी गुड कोलेस्‍टेरॉल को बढ़ाएं और बैड कोलेस्‍टेरॉल को कम करें। जीवनशैली में सुधार के जरिये ये दोनों काम हो सकते हैं। इसका सबसे महत्‍वपूर्ण भाग भोजन है। सबसे पहले तो कोलेस्‍टेरॉल और सैचुरेटेड फैट से भरपूर खाद्य पदार्थों को कम से कम कर दें। अंडे, कलेजी, गुरदे आदि में मांस और पनीर में कोलेस्‍टेरॉल ज्‍यादा होता है। मक्‍खन, सूअर का मांस गाय का मांस, नारियल तेल, खजूर के तेल आदि में सैचुरेटैड फैट बहुत ज्‍यादा होता है।

कौन सा तेल इस्‍तेमाल करें

इनकी जगह मकई का तेल, सोयाबीन और सरसों तेल जैसे पॉली अनसैचुरेटेड फैट्सवाले खाद्य पदार्थ भोजन में ज्‍यादा से ज्‍यादा शामिल करना चाहिए क्‍योंकि ये एचडीएल बढ़ाकर धमनियों में एलडीएल को जमा होने से रोकने में मदद करते हैं। जैतून, मूंगफली आदि का तेल मोनो सैचुरेटेड फैट वाला होता है और इनका एलडीएल पर कमोबेस कोई असर नहीं होता है। अमेरिकन हार्ट इंस्‍टीट्यूट की सिफारिश के अनुसार पुरूष को दिन भर में तीन सौ मिलीग्राम कोलेस्‍टेरॉल और महिला को दो सौ पचहत्‍तर मिलीग्राम कोलेस्‍टेरॉल की मात्रा का ही सेवन करना चाहिए। भोजन में च‍िकनाई की मात्रा 30 फीसदी से अधिक होनी चाहिए मगर इसमें सैचुरेटेड फैट एक तिहाई से ज्‍यादा नहीं होना चाहिए। यदि किसी के खून में पहले से ही कोलेस्‍टेरॉल बढ़ा हुआ है तो उसे भोजन में च‍िकनाई के बारे में अपने डॉक्‍टर से सलाह लेनी चाहिए।

रेशेदार भोजन

यह पाया गया है कि भोजन में रेशेदार पदार्थ को शामिल करने से एलडीएल का स्‍तर कम होता है। घर में आप चोकर युक्‍त आटा, छिलका युक्‍त अनाज और दालें, चावल, सलाद के पत्‍ते आदि को शामिल कर भरपूर मात्रा में रेशा प्राप्‍त कर सकते हैं।

इसी प्रकार लेसिथिन एक च‍िकनाईवाला आहार है जिसमें फासफो लिप‍ि‍ड सबसे अधिक होता है। यदि एलडीएल का स्‍तर कम करना है तो इसका सेवन करना चाहिए। यह ऐसा पदार्थ होता है जो कोलेस्‍टेरॉल को बारीक कणों में तोड़ देता है जिन्‍हें हमारे शरीर की पाचन प्रणाली पचा सकती है।

वानस्‍पतिक तेल, अनाज और सोयाबीन तथा अन पाश्‍चयुराइज्‍ड दूध लेसिथिन के अच्‍छे स्रोत हैं। जरूरत पड़ने पर हमारे शरीर की कोशिकाएं खुद भी लेसिथिन का उत्‍पादन करती हैं मगर उसके लिए शरीर में कई तरह के विटामिन बी की जरूरत पड़ती है।

जिन लोगों के शरीर में कोलेस्‍टेरॉल अधिक है उन्‍हें रोज कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीना चाहिए। अधिक मात्रा में पानी पीने से त्‍वचा और गुरदे की फालतू चरबी तोड़ने की गतिविधि को बल मिलता है। इसके बदले में शारीरिक प्रणाली से अतिरिक्‍त कोलेस्‍टेरॉल बाहर चला जाता है। पानी में धनिया उबालकर पीने से भी शरीर से कोलेस्‍टेरॉल की मात्रा कम होती है।

(डॉक्‍टर हरिकृष्‍ण बाखरू की प्रभात प्रकाशन से छपी किताब ‘रोगों का प्राकृतिक उपचार’ से लिए गए आलेख का संपादित अंश। ये किताब आप hindibooks.org से मंगा सकते हैं। )

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